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संलयन ऊर्जा की खोज किसने की ?

बाएं से दाएं: मार्क ओलिफांट (१९०१-२०००); लीमन स्पिट्जर (१९१४-१९९७); आर्थर एडिंगटन (१८८२-१९४४); हंस बेथे (१९०६-२००५); और अर्नेस्ट रदरफोर्ड (१८७१-१९३७) | (Click to view larger version...)
बाएं से दाएं: मार्क ओलिफांट (१९०१-२०००); लीमन स्पिट्जर (१९१४-१९९७); आर्थर एडिंगटन (१८८२-१९४४); हंस बेथे (१९०६-२००५); और अर्नेस्ट रदरफोर्ड (१८७१-१९३७) |
ईटर में आने वाले दर्शक आमतौर पर यह प्रश्न करते हैं कि संलयन ऊर्जा की खोज किसने की | इस प्रश्न के उत्तर देने के कई तरीके हैं |सबसे आसान एवं सबसे स्पष्ट यही कहना होगा कि संलयन ऊर्जा की खोज स्वयं प्रकृति ने की |यद्यपि यह कहना थोड़ा कुंठा ग्रस्त भी हो सकता है|बिग बैंग होने के करीब 10 करोड़ साल बाद, बहुत ही अधिक घनत्व एवं ताप वाले,एक दैत्याकार गैसीय गोले, जो कि हाइड्रोजन गैस के बादलों से बना था, में पहली संलयन क्रिया हुई और इस तरह पहले सितारे का जन्म हुआ |इसके बाद यह प्रक्रिया लगातार चलती रही और लाखों सितारों का जन्म हुआ और आज भी हो रहा है |

ब्रह्मांड में संलयन अवस्था, अन्य सभी अवस्थाओं (ठोस, द्रव एवं गैस) में सबसे अधिक मात्रा में पाई जाती है |hसौर परिवार जहाँ हम रहते हैं, में कुल द्रव्यमान का लगभग 99.86%, संलयन अवस्था में है |

20वीं सदी के शुरूआत तक सूर्य की तेज़ चमक और तारों की दिल लुभावनी झिलमिलाहट ऐसे आश्चर्य थे जिनकी व्याख्या करना संभव नहीं था | 1920में एक अंग्रेज वैज्ञानिक आर्थर ऐडिंगटन ने सबसे पहले यह सुझाव दिया कि तारे अपनी असीमित ऊर्जा हाइड्रोजन के हीलियम में संलयन द्वारा प्राप्त करते हैं | ऐडिंगटन का सिद्धांत 1926 में उनकी " सितारों की आंतरिक संरचना" में प्रकाशित हुआ जिसने आधुनिक सैद्धांतिक खगोल भौतिकी की नींव रखी |जिस सिद्धांत एवं विधियों की अभिधारणा ऐडिंगटन ने की उन विधियों को सही रूप से एक अन्य वैज्ञानिक हैंस बैथ ने समझाया |1939 में हैंस बैथ (1906-2005) के " प्रोटोन-प्रोटोन चक्र" सिद्धांत ने इस रहस्य को हल किया |बैथ को उनके कार्य ' स्टेलर न्यूक्लियोसिंथेसिस ' पर 1967 में नोबल पुरस्कार मिला |

हैंस बैथ ने जो ''प्रोटॉन-प्रोटॉन चक्र'' की पेहचान सं १९३९ में की थी वो जटिल और लम्बी प्रणाली है जिससे सूरज की तरह सितारे उर्जा उत्पन्न करते हैं | एक संलयन रिएक्टर में ड्युटीरियम-ट्रिटियम प्रतिक्रिया अधिक सरल है लेकिन वही परिणाम आता है: हल्के परमाणु (हाइड्रोजन या उसके दो भारी आइसटोप) भारी परमाणु (हीलियम) में संलयन करते हैं, इस प्रक्रिया मे भारी मात्रा मे ऊर्जा उत्पन्न होती है | (Click to view larger version...)
हैंस बैथ ने जो ''प्रोटॉन-प्रोटॉन चक्र'' की पेहचान सं १९३९ में की थी वो जटिल और लम्बी प्रणाली है जिससे सूरज की तरह सितारे उर्जा उत्पन्न करते हैं | एक संलयन रिएक्टर में ड्युटीरियम-ट्रिटियम प्रतिक्रिया अधिक सरल है लेकिन वही परिणाम आता है: हल्के परमाणु (हाइड्रोजन या उसके दो भारी आइसटोप) भारी परमाणु (हीलियम) में संलयन करते हैं, इस प्रक्रिया मे भारी मात्रा मे ऊर्जा उत्पन्न होती है |
ऐडिंगटन, बैथ एवं दूसरे अन्य लोगों के सितारों पर काम करने से पहले, न्यूज़ीलैंड में जन्में एक वैज्ञानिक अरनैस्ट रदरफोर्ड परमाणु की संरचना पर काम कर रहे थे|1908 के रसायन विज्ञान के नोबल पुरस्कार विजेता रदरफोर्ड ने जान लिया था कि परमाणु नाभिक से अत्यधिक शक्तिशाली बल निकल सकता है |वर्ष 1934 के अपने एक सुप्रसिद्ध प्रयोग द्वारा, जिसने आज के संलयन क्षेत्र में खोज के द्वार खोले, उन्होंने यह जान लिया था कि ड्यूटेरियम (हाइड्रोजन के एक भारी आइसोटोप) के संलयन विधि द्वारा हीलियम में परिवर्तन से एक बहुत ही ताकतवर प्रभाव पैदा होता है |

आस्ट्रेलिया में जन्मे उनके एक सहायक मार्क आलीफेंट (1901-2000) ने इन शुरूआती संलयन प्रयोगों में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की जिससे हाइड्रोजन के दूसरे भारी आइसोटोप ट्रिशियम और हीलियम-3 की खोज हुई |हीलियम-3, हीलियम का एक बहुत ही दुर्लभ आइसोटोप है जो संलयन प्रक्रिया को समझने कि अन्यूट्रॉन संलयन की संभावनाओं को ज़िंदा रखता है |

द्वितीय विश्व युद्ध की शुरूआत के समय तक सैद्धांतिक रूप रेखातैयार कर ली गई थी |मूलभूत वैज्ञानिक पहलूओं पर अभी भी काफी कुछ कार्य करना बाकी था (और इन सब कार्यों में उम्मीद से ज़्यादा समय लगा रहा था) लेकिन फिर भी संलयन क्रिया करने के लिए मशीनों की ड्राईंग पर काम शुरू हो गया था |

यद्यपि संलयन रिएक्टर पर पहला एकस्व अधिकार पत्र 1946 में ब्रिटेन में भरा गया तथापि सही अर्थों में संलयन पर खोज 1951 में शुरू हुई |

अर्जेंटीना के इस दावे के बाद कि उसके वैज्ञानिकों ने नियंत्रित नाभिकीय संलयन प्राप्त कर लिया है और जो कि बाद में एक अफवाह साबित हुआ; अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस एवं जापान में इसे अपने यहाँ विकसित करने के लिए एक भगदड़ सी मच गई और जोर शोर से तैयारियाँ शुरू हो गई |

अर्जेंटीना के झूठे दावे के मात्र दो महीने बाद ही, मई 1951 में अमेरीकी खगोल शास्त्री लायमन स्पिट्ज़र ने स्टिलेरेटर की अवधारणा प्रस्तुत की जो 1950 और 1960 के दशकों में संलयन खोज के क्षेत्र में पूरी तरह तब तक छाई रही जब तक कि उसे रूस में जन्मे एक और अवधारणा टोकामैक ने मात ना दे दी |

बाकी तो सब इतिहास है जैसा कि हम सब जानते है कि ऐडिंगटन के सैद्धांतिक महत्त्वपूर्ण उद्भव के बाद एक शताब्दी के भीतर ही ईटर का निर्माण किया जा रहा है जो कि इस बात को साबित करेगा कि सूर्य और अन्य सितारों की ऊर्जा; जैसी ऊर्जा मानव निर्मित मशीनों में पृथ्वी पर भी पैदा की जा सकती है |