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  • बाएं से दाएं: मार्क ओलिफांट (१९०१-२०००); लीमन स्पिट्जर (१९१४-१९९७); आर्थर एडिंगटन (१८८२-१९४४); हंस बेथे (१९०६-२००५); और अर्नेस्ट रदरफोर्ड (१८७१-१९३७) |

    संलयन ऊर्जा की खोज किसने की ?

    ईटर में आने वाले दर्शक आमतौर पर यह प्रश्न करते हैं कि संलयन ऊर्जा की खोज किसने की | इस प्रश्न के उत्तर देने के कई तरीके हैं |सबसे आसान एवं सबसे स्पष्ट[...]

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  • अंग्रेज़ी जो इटर संगठन का कार्य भाषा है, सिर्फ १५ प्रतिशत कर्मचारियों का मूल है, परंतु एक दूसरे को पूरी तरह समझने के लिये एक सामान्य भाषा पर्याप्त नही  |

    35 देश, 40 भाषाएँ एवं अनेक संस्कृतियाँ

    डयूरैंस नदी के किनारे,एक्स-एन-प्रोविंस एवं मेनोस्कके करीब मध्य में स्थित इस क्षेत्र पर एक विशेष समुदाय का उदय हुआ है — 500 लोगों का यह समुदाय 35 देशों[...]

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  • ३५२ पहिये, ४६ मीटर लम्बी, ९ मीटर चौड़ी, ११ मीटर उंची और ६०० मेट्रिक टन कंक्रीट के खण्ड |

    ईटर की जीवन रेखा

    100 कि.मी. लंबा यह रास्ताएक बस या कार के लिए एक छोटी सी यात्रा हो सकती है पर एक 352 पहियों वाले जी हाँ 352 पहियों वाले) 600 टन भार ले जा रहे एक ट्रक क[...]

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  • दुनिया के नौ तार प्रदायक इटर चुम्बक प्रणाली में योगदान दे रहे हैं, जिसमे से तीन प्रदायक दुनिया के बाज़ार में नये हैं |

    संसार के चारों तरफ बुनता ताना-बाना

    ईटर की टोरोइडल फील्ड कुंडली बनाने में इस्तेमाल होने वाले निओबिअम-टिन (Nb3Sn) अतिचालक तंतुओं का निर्माण 2009 में शुरू हुआ | ईटर के छः सहयोगी सदस्यों ची[...]

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एक सितारे का जन्म होगा

इटर वर्तमान का सबसे बड़ा और जटिल टोकामेक बनेगा | इसकी रचना दुनिया के सैकड़ों संलयन यंत्रों के अनुभव को मिलाकर हो रही है, ये सिद्ध करेगा की संलयन ऊर्जा वैग्यानिक और तकनीकी तरीके से संभव है | (Click to view larger version...)
इटर वर्तमान का सबसे बड़ा और जटिल टोकामेक बनेगा | इसकी रचना दुनिया के सैकड़ों संलयन यंत्रों के अनुभव को मिलाकर हो रही है, ये सिद्ध करेगा की संलयन ऊर्जा वैग्यानिक और तकनीकी तरीके से संभव है |
इस धरती पर शीघ्र ही एक सितारे का जन्म होगा,एक ऐसा सितारा जो अन्य सितारों से अलग होगा और यह एक मानव निर्मित सितारा होगा |ईटर नाम का यह सितारा आने वाले दशक (2020-30) के शुरुआती वर्षों में चमकेगा |ईटर का लैटिन भाषा में अर्थ है, रास्ता या पथ एवं यह "अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लीयर प्रायोगिक रिएक्टर" का संक्षिप्त रूप है | वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी के हिसाब से ये मानव जाति की एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी |एक कृत्रिम सितारे का निर्माण करना एवं उससे बहुतायत मात्रा में ऊर्जा प्राप्त करना, सम्भवतः मानव सभ्यता के मायने ही बदल देगा |

ईटर परियोजना कई बिलियन यूरो का एक अंतर्राष्ट्रीय उपक्रम है जिसमें चीन, यूरोपीयन संघ, भारत, जापान, कोरिया रुस एवं अमेरिका शामिल है | ईटर परियोजना 60 वर्षों के वैज्ञानिक आविष्कार एवं कई दशकों के राजनैतिक वार्तालापों की उपज है | यह भौतिक वैज्ञानिकों की तीन पीढ़ियों का एक सपना था जो अब एक वास्तविकता है एवं सैकड़ों वैज्ञानिक, इंजिनियर व कार्मिक दक्षिण फ्रांस में जहाँ ईटर का निर्माण हो रहा है, काम कर रहे हैं |

ईटर मशीन एक टोकामैक मशीन है | टोकामैक शब्द एक रूसी वाक्यांश टोरोइडल चैम्बर, चुंबकीय कॉइल का संक्षिप्त रूप है | टोकामैक मशीन का विकास 1960 के दशक में रूस में उस समय हुआ जब विभिन्न देश ऐसी मशीनों की खोज में लगे हुए थे,जिनके अंदर सूर्य एवं अन्य सितारों पर होने वाली नाभिकीय क्रियाओं को कराया जा सके |एक तारे की तरह ही, टोकामैक मशीन में भी कम भार वाले परमाणुओं के नाभिकों को आपस में मिलाकर अधिक भार वाले परमाणुओं का निर्माण किया जाता है | इस प्रक्रिया में अधिक भार वाला जो परमाणु बनता है उसकी नाभिक का कुल भार कम भार वाले परमाणुओं के कुल नाभिकीय भार के योग से कम होता है | नाभिकीय भार का यह अंतर अलबर्ट आइंस्टीन के समीकरण E=mc2के हिसाब से ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है |इस समीकरण में C-प्रकाश का वेग है जिसका परिमाण 3 X 108मीटर प्रति सेकण्ड होता है जोकि अपने आप में एक बहुत बड़ी संख्या है | अतः छोटा सा नाभिकीय भारभी अत्याधिकऊर्जा की मात्रा में परिवर्तित हो जाता है |इस ऊर्जा प्राप्ति का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि एक ग्राम का नाभिकीय भार जब नाभिकीय प्रक्रिया द्वारा ऊर्जा में परिवर्तित होगा तो उस ऊर्जा की मात्रा आठ टन खनिज तेल से प्राप्त ऊर्जा की मात्रा के बराबर होगी | ईटर टोकामैक आज तक की बनी सभी टोकामैक मशीनों में सबसे बड़ा एवं सर्वाधिक जटिल होगा | संपूर्ण विश्व में सैंकड़ो मशीनों पर किए गए प्रयोगों से प्राप्त अनुभवों के आधार पर निर्मित यह मशीन इस बात को साबित करेगी कि वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिक आधार पर पृथ्वी पर संलयन ऊर्जा प्राप्त करना संभव है |

ईटर एक पहली टोकामैक मशीन है जिससे वैज्ञानिक प्रयोगों से आगे बढ़कर वास्तविक तौर पर संलयन ऊर्जा प्राप्त होगी | यह मशीन नाभिकीय क्रिया में खर्च की गई ऊर्जा से करीब 10 गुणा ऊर्जा वापिस प्रदान करेगी | यह एक निर्णायक उपलब्धि होगी जो कि अभी तक संभव नही हो पाई है और यह उपलब्धि औद्योगिक एवं वाणिज्यिक रुप से संलयन ऊर्जा प्राप्ति के द्वार खोल देगी |

विश्व में ऊर्जा की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है और यह मांग 2050 तक दुगनी हो जाएगी | ऊर्जा की बढ़ रही इस बेतहासा मांग को पूरा करने के लिए संलयन ऊर्जा एक बहुत ही अच्छा विकल्प है| यह मूलभूत रूप से सुरक्षित है, पर्यावरण पर इसका बुरा असर ना के बराबर होगा (इसमें से ना ही कोई ग्रीन-हाऊस गैस निकलेगी एवं ना ही लंबे समय तक रहने वाले कोई नाभिकीय अवशेष निकलेंगे) एवं इसके लिए जरूरी ईंधन पूरे विश्व में करीब करीब ना खत्म होने वाली मात्रा में उपलब्ध है |

इटर कार्य स्थल को तैयार करने का काम जनवरी २००७ में शुरू किया गया था | २०१० की गर्मी के मौसम में निर्मान कार्य शुरू करने के लिये दो साल मे ४२ हेक्टेर के मंच को साफ, समतल और तैयार किया गया | (Click to view larger version...)
इटर कार्य स्थल को तैयार करने का काम जनवरी २००७ में शुरू किया गया था | २०१० की गर्मी के मौसम में निर्मान कार्य शुरू करने के लिये दो साल मे ४२ हेक्टेर के मंच को साफ, समतल और तैयार किया गया |
अधिकारिक तौर पर ईटर परियोजना का जन्म नवम्बर 1985 के जिनेवा सम्मेलन में उस समय हुआ जब "मानवता के लाभार्थ कभी खत्म ना होने वाले ऊर्जा स्रोत" के रुप में संलयन ऊर्जा के विकास के लिए रोनाल्ड रेगन एवं मिखेलch गोरबाचोव विश्व स्तर पर प्रयत्न करने के लिए राजी हुए |

आम तौर पर विश्व के विभिन्न देशों में ऊर्जा के स्रोतों के नियंत्रण को लेकर झगड़े होते रहते हैं अतः ईटर को विश्व शांति की दृष्टि से भी एक महत्त्वपूर्ण परियोजना माना जाता है | शुरूआत में ईटर में चार सदस्य थे — यूरोपीय संघ, जापान, सोवियत संघ एवं अमेरिका | चीन एवं कोरिया 2003 में एवं भारत 2005 में इसमें शामिल हुए | सर्न एवं यूरोपीय अंतरिक्ष ऐजेंसी जैसी अंतर्राष्ट्रीयसंस्थाओं की तरह, ईटर को भी अक्टूबर 2007 में एक वैज्ञानिक अंतर्राष्ट्रीय संस्था का दर्जा मिला |

एक ऐसी टोकामैक मशीन डिज़ाईन को जो वैज्ञानिक, प्रोद्योगिकी एवं आर्थिक रूप से सभी ईटर सदस्यों को स्वीकार्य हो, पूरा करने में करीब बीस साल लगे |इसके बाद 2001 में इस विषय पर चर्चा शुरू हुई कि इस मशीन का निर्माण किस जगह हो | इसका निर्णय लेने में और चार साल लगे |

28 जून 2005, को यूरोपीयन यूनियन द्वारा प्रस्तावित मारशैलके उत्तर में करीब 75 किलो मीटर दूर डयूरेंश रिवर वैली में स्थित 180 हैक्टर क्षेत्र पर ईटर मशीन के निर्माण के लिए सभी ईटर सदस्य सहमत हो गए |यह जगह यूरोपीय परमाणु ऊर्जा केंद्र कैडाराशके नज़दीक है जहां फ्रांस का सबसे बड़ा नाभिकीय खोज केंद्र स्थित है |जनवरी 2007 में इस जगह पर प्रारम्भिक गतिविधियाँ शुरू हुई |दो वर्ष के अंतराल में, 42 हेक्टर ज़मीन को साफ किया गया, उबड़ खाबड़ जगह को समतल किया गया एवं उसे निर्माण कार्य के लिए तैयार किया गया |2010के शुरूआत में निर्माण कार्य पूरे जोर शोर से शुरू हो गया |

अभी तक चार साल बाद तक 90 X 130मीटर वर्ग क्षेत्र एवं 17 मीटर गहरे, भूकंप अप्रभावित गड्ढ़े में, जिस पर ईटर टोकामैक एवं इसकी मुख्य इमारते खड़ी होंगी, का दूसरा बेसमेंट बनाने के लिए करीब 4000 टन स्टील डाला जा चुका है | डेढ़ मीटर मोटा यह रीइनफोर्स्ड कंक्रीट करीब 3,60,000 टन वजन को वहन करने में समर्थ है जो कि पूरी एम्पायर स्टेट बिल्डिंग के भार से भी ज्यादा है |

इस 42 हेक्टर क्षेत्र पर कुल 39 भवनों का निर्माण किया जाएगा जिनमें से कुछ भवनों का निर्माण कार्य प्रगति पर है जबकि कुछ अन्य प्रमुख इमारतों जैसे कि ऐसेम्बली हाल, क्रायोस्टेट वर्कशाप एवं कॉइल वाइंडिंग फेसिलिटी का निर्माण कार्य शुरू होने वाला है |ईटर स्थल पर चल रही तीव्र गतिविधियों के अलावा, ईटर का काम दुनियाँभर में फैले बहुत से कारखानों में भी बढ़ रहा है | ईटर परियोजना की एक खास बात यह है कि इसमें सदस्य देशों को अपना योगदान सामान के रूप में देना होगा ना कि मुद्रा के रूप में | यह बात परियोजना के शुरू में तय कर ली गई थी |   

आर्थिक योगदान देने के बजाय सहयोगी सदस्य चीन, यूरोपीय संघ, भारत, जापान, कोरिया, रूस एवं अमेरिका ईटर में, ईटर मशीन के विभिन्न भागों व कल पूर्जों का योगदान देंगें |यूरोप, भवन निर्माण के रूप में भी अपना अंशदान करेगा |

Img3_हालांकि सामान के रूप में योगदान देने की प्रक्रिया में, परियोजना के प्रबंधन एवं इसे कार्यरूप देने में काफी जटिलता आएगी लेकिन इस सिद्धांत द्वारा ईटर सदस्यों को संलयन मशीन के निर्माण कार्य का बेशकीमती अनुभव प्राप्त होगा |

ईटर मशीन के निर्माण में सहयोग देकर सदस्य देश भविष्य में व्यावसायिक संलयन मशीन बनाने का एक प्रौद्योगिक एवं औद्योगिक आधार तैयार कर रहे हैं |

ईटर सदस्य देशों ने पहले ही अगली मशीन जिसे डेमो का नाम दिया है के बारे में प्रारंभिक अध्ययन करना शुरू कर दिया है |डेमो एक स्थिर अवस्था वाली यानि काफी लंबे समय तक एक साथ काम करने वाली एक टोकामैक मशीन होगी जिसे कुछ लोग औद्योगिक प्रोटोटाइप एवं कुछ लोग प्री-इंडस्ट्रियल प्रोटोटाइप समझ रहे हैं |यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है कि डेमो भी ईटर की तरह एक अंतर्राष्ट्रीय परियोजना होगी या फिर हर देश इसे अपने यहाँ अलग-अलग बनाएगा |

एक प्रश्न हमेंशा पूछा जाता है कि संलयन क्रिया द्वारा प्राप्त विद्युत कब लोगों को प्राप्त होगी |कब मानव संलयन प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न ऊर्जा से अपने घर का बल्ब जला पाएगा |ईटर एवं डेमो की सफलता के बाद संलयन ऊर्जा का निर्माण राजनैतिक निर्णय पर निर्भर करेगा |जैसा कि जाने माने संलयन रूसी वैज्ञानिक ने कहा है "जब मानव जाति को संलयन ऊर्जा कि आवश्यकता होगी वह उसे मिल जाएगी |"

ऐसा अनुमान है कि विद्युत ऊर्जा की तेज़ी से बढ़ती माँग, लुप्त होते जा रहे जीवाश्म ईंधन,पर्यावरण में आ रहे अनचाहे परिवर्तन एवं विभंजन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त नाभिकीय ऊर्जा की स्वीकृति के संदर्भ में उठ रहे प्रश्नों को देखते हुए,इस सदी के दूसरे भाग में संलयन ऊर्जा की जरूरत पड़ेगी | मानव जाति की इस इच्छा को पूरा करने के लिए 35 देशों के स्त्री एवं पुरूष, फ्रांस में प्रोवेंस स्थित सेंट-पॉल-लेज़-ड्युरेंश गाँव में इक्ट्ठे हुए हैं |इस सुंदर सी जगह में, वो मानव जाति के सुनहरे एवं सर्वाधिक चिरस्थाई सपने यानि सूर्य की आग पर विजय पाना एवं इसे आने वाली सदी में मानव जाति के लिए उपलब्ध कराने; को पूरा करने के लिए जी जान से लगे हुए हैं|